ADVERTISEMENT

[PDF] Shiv Puran PDF in Hindi in 2024 | शिव पुराण

Amresh Mishra

Updated on:

Shiv Puran PDF in Hindi
ADVERTISEMENT

Shiva Puran | शिव पुराण in Hindi PDF download link is available below in the article, download PDF of Shiva Puran | शिव पुराण in Hindi using the direct link given at the bottom of content. . Shiva Puran | शिव पुराण PDF Hindi

Shiv Puran PDF In Hindi

PDF NAME

SHIV PURAN PDF

PAGES

812

CATEGORY

DHARMIK

LANGUAGE

ADVERTISEMENT

HINDI

SOURCE

BESTBOOKSHINDI.IN

PDF

AVAILABLE

SIZE

49.2  MB

 

Shiv Puran PDF Details

Shiv Puran PDF in Hindi
Shiv Puran PDF in Hindi

Shiv Mahapuran में कथा आती है कि – हिमालय ने पार्वती के विवाह के विषय में देखे गये स्वप्न का वर्णन करते हुये अपनी स्त्री से कहा कि – “नारदोक्त वर के लक्षणों को धारण करने वाले एक तपस्वी तपस्यार्थ हमारे नगर के उपकंठ में आये है। उनको भगवान शम्भु बनाकर मैं उनकी सेवा में पार्वती को रखना चाहता था। किन्तु जब उन्होंने मेरी अनुरोध अननुमोदित कर दी तब मेरा उनके साथ सांख्य और वेदान्त के अनुसार महान विवाद हुआ अर्थात मैं सांख्य मत का अवलंबन कर पार्वती को उनके साथ रखने का प्रस्ताव कर रहा था और वे वेदांत मत का अवलम्बन कर मेरी प्रार्थना अस्वीकृत कर रहे थे। अंत में मुझे सफलता मिली और उन्होंने मेरी पुत्री को अपनी सेवा में रख लिया।”

हिमालय का यह स्वप्न तो उस घटना की पूर्व सूचना है, जिसके अनुसार आगे पार्वती एवं शंकर में परस्पर सांख्य एवं वेदान्त के अनुसार शास्त्रार्थ हुआ था और पार्वती, जो सांख्य मत का अवलंबन कर रही थी, जिसमें विजयी हुई थी।

एक स्थल पर सांख्य शास्त्र के प्रवर्तक कपिलमुनि को भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है। एक अन्य स्थल पर भगवान शंकर ने ब्रह्मा जी से कहा है कि अष्टम द्वापर में मैं ‘दघिवाहन’ नाम से अवतार लूंगा। उस समय मैं महर्षि व्यास जी की सहायता करूंगा। उस अवतार में कपिल आसुर, पंचशिख, शाल्वक ये चार योगी पुत्र मेरे ही समान होंगे। किन्तु यहां यह ध्यान रखना चाहिये कि सांख्य ग्रंथों के अनुसार ‘आसुरि’ और ‘पंचशिखाचार्य’ महर्षि कपिल के शिष्य है। भगवान शंकर के सहस्त्रनामों में उनका एक नाम कपिलाचार्य भी है।

यह एक बड़ी ही आश्चर्यजनक व असामान्य बात है कि एक ही पुराण में एक स्थल पर कपिल को शंकर के अवतार ‘दघिवाहन’ का पुत्र कहा गया है और दूसरे स्थल पर भगवान शंकर को ही कपिलाचार्य कहा गया है। और यह तो अति विचित्र बात है कि उसी ग्रन्थ में कपिल के मत की कटु शब्दों में आलोचना भी की गई है। कपिल के शास्त्रों को भ्रामक और उनके पढ़ने वालों को अधम, शठ एवं शिवनिन्दापरायण तथा अन्यथावादी कहा गया है। उनके उपदेशों के सुनने का निषेध भी किया गया है।

इतना होने पर भी जिस समय शिव महापुराण की रचना की जा रही थी और शिव की भक्ति का प्रसार एवं प्रचार हो रहा था उस समय भी सांख्य को जानने वाले, निघण्ट के समान विस्तृत, सामान्य मनुष्यों के लिये दुर्ज्ञेय सांख्य के गीतों को पढ़ते थे। किन्तु फिर भी सामान्य जनता सर्वस्व कामनाओं को पूर्ण करने वाले शिव के स्तोत्रों / रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र की और ही आकृष्ट होने लगी थी।

अच्छी बातें (केवल पढ़ने के लिए) : यदि गुरू,पिता,नेता, स्वामी एवं पूज्यजनों की महिमा-बड़ाई देख-सुन कर शिष्य, पुत्र, अनुगामी तथा आश्रयीजन प्रसन्न नहीं होते और शिष्य, पुत्र तथा अनुगामी की उन्नति को देखकर गुरू, पिता तथा श्रेष्ठजन संतुष्ट नहीं होते, तो इन सब में परस्पर सुन्दर व्यवहार कैसे हो सकता है। और सुन्दर व्यवहार बिना परिवार तथा समाज का सु़द्वद़ होना और परिवार तथा समाज के सदस्यों को मानसिक प्रसन्नता, निर्मलता, उत्साह एवं सुख-शांति का प्राप्त होना आकाश-कुसुम ही हो जायेगा।

ज्ञान-वैराग्य की लम्बी-चैड़ी बातें बनाने से कोई फल नही होता, जब तक व्यवहार पवित्र न बनाया गया हो। साथी लोग अपना व्यवहार पवित्र रखें या न रखें हमें अपने व्यवहार को समुज्जवल बनाए रखना चाहिए।

 

जिसका हृदय कोमल है, जिसके मन, वाणी, कर्म सरल हैं, जो निरंकारी, निर्मानी तथा निष्कामी है, उसी का व्यवहार पवित्र रह सकता है। जिन पुरूषो तथा देवियों के सुन्दर व्यवहार से सम्पर्क में आनें वाले लोग पवित्रता, निर्भयता तथा प्रेम की प्राप्ति करते हैं, वे संसार-सागर के रत्न, पृथ्वी के भूषण तथा समाज के प्रकाश स्तम्भ है।

अपने कर्तव्यों को न देखकर दूसरे के कर्तव्यों पर दृष्टी रखना; दूसरे के अधिकार की रक्षा न करना, अपने अधिकार की लालसा रखना; स्वयं सहन न करना दूसरे को सहाने की चेष्टा करना; अपनी कामना की पूर्ति को प्राथमिकता देना, दूसरे की विवेकपूर्ण इच्छा की भी पूर्ति न चाहना; अपने मन को न मारना, दूसरे के मनोभावों को कुचलने की चेष्टा रखना- ये सभी पवित्र व्यवहार के शत्रु है। उपर्युक्त दुर्गुण जिनके पास हैं, वे व्यवहार-कुशल नहीं हो सकते। उनके व्यवहार लोगों को सुख नहीं दे सकते। उपर्युक्त त्रुटियों को निकाल देने पर व्यवहार अपने आप पवित्र हो जायेगा।

कतिपय बातों को छोड़कर महाराज श्री राम के जीवन-व्यवहार गृहस्थों के लिए प्रकाशस्तम्भ हैं। महामना महाराज श्रीराम, महाप्राण महाराज श्रीभरत तथा महातपस्विनी श्रद्वेया मां सीता-इन सबके त्याग, तप, उदारता अत्यन्त सराहनीय हैं। राम-भरत जैसा भाई-भाई में परस्पर त्याग तथा प्रेम की भावना आ जाय तो आज ही समाज का कायापलट हो जाय।

Also Read:- All The Best Meaning In Hindi – All The Best Means In Hindi

कोई मुसलमान, ईसाई तथा अन्य लोग महाराज श्री राम का नाम सुनकर घबरा न जायं महापुरूषों का जीवन-आदर्शएक जाति, सम्प्रदाय तथा देश मात्र के लिए नहीं होता। जैसे सूर्य, चन्दªमा, पृथ्वी वायु,जल,अग्नि आदि सबके हैं, इसी प्रकार महापुरुष सबके हैं, और उनका मानवीय जीवन-आदर्श सबको समान अनुकरणीय हैं।

Shiv Puran PDF DOWNLOAD IN Hindi 

CLICK HERE TO DOWNLOAD PDF

ADVERTISEMENT

Leave a Comment