Buy HardCopy:- Bhagwat Geeta in Hindi |
नमस्कार दोस्तों क्या आप Bhagwat Geeta in Hindi PDF डाउनलोड करना चाहते है तो आप सही लेख पढ़ रहे है आज की इस पोस्ट में हम Bhagwat Geeta in Hindi में डाउनलोड करने का लिंक दे रहे है।
Bhagwat Geeta in Hindi PDF
Book Name |
Bhagwat Geeta in Hindi PDF |
Total Page |
1299 |
Size |
5 MB |
Download Link ADVERTISEMENT
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Language |
Hindi |
दुनिया में आज के समय में यदि गीता को इस ढंग से अध्ययन किया जाये तो पूरी मानवता का भला होगा। श्रीमद्भगवद्गीता में मानवों में समता, मानव एवं प्राणियों में समता और सारे प्राणियों में समता का वर्णन है। इस संबंध में गीता के भीष्म पर्व का छठा तथा 32वां श्लोक विशेष ध्यान देने योग्य है।
मनुष्य की क्या गति क्या है? इस प्रश्न पर आज का आदमी विशेष रूप से ज्यादा चिन्तित दिखाई देता हैं हालांकि आम आदमी यह बहुत अच्छी तरह जानता है कि जो जिस तरह का कर्म करेगा, वह उसी तरह का फल पाएगा। मनुष्य की यही प्रकृतिस्थ गति है। फिर भी मनुष्य इसका परिणाम जानते हुए भी सही कर्म नहीं करता और अंततः ज्यादा दुख ही भोगता है।
Geeta में प्राणियों के गुण तथा कर्म के अनुसार उनकी उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ, इन 3 गतियों का वर्णन किया गया हैं। कर्म योग एवं सांख्य योग की नजर से अच्छे भाव से किया गया कर्म और भक्ति करने वाले की गति तथा सामान्य रूप से सभी जीवों की गति का भी इसमें उचित उल्लेख किया गया है।
अपनी रचना के समय से ही श्रीमद्भगवद्गीता जन-सामान्य को प्रेरित करती आई है। वर्तमान समय का मनुष्य समस्याओं से ग्रस्त होकर गीता की ओर जाने का सोचता तो है, परन्तु वह गीता की ओर कितना जा पाता है, यह उसके कर्मों की गति से निर्धारित होता है।
दुनिया की लगभग 80 से ज्यादा भाषाओं में भगवद्गीता का अनुवाद हो चुका है। इसे पूरे विश्व में एक प्रमाणिक शास्त्र माना जाता है।
श्रीमद्भागवत गीता का एक संदेश – दूसरों का हित करना सबसे बड़ा धर्म
इस विशाल सृष्टि में मानव ऐसा प्राणी है, जिसमें विवेक का प्राधान्य होता है। अपने विवेक के माध्यम से उसने अनेक प्रकार के उद्यम करके वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नमि की है। इस उन्नति का लक्ष्य जीवन को सुखी बनाना है। सुख प्राप्त करने की उसकी यह अभिलाषा धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है। जब सुख के साधन केवल भौतिक सुखों तक ही सीमित रह जाते हैं, तो धीरे-धीरे स्वार्थ और ‘स्व’ की भावना बढ़ने से मनुष्य दूसरों के हित-अहित की चिंता किए बिना अपने ही सुख-साधनों को बढ़ाने में जुट जाता है।
इससे समाज के साधन-हीन वर्ग निरंतर शोषण की चक्की में पिसने लगते हैं। समाज में असंतुलन उत्पन्न होने और शोषण बढ़ने से असंतोष, अराजकता एवं अनैतिकता को बल मिलता है। प्रकृति भी इस मानवीय शोषक का शिकार होती है और अंततः इससे प्राकृतिक आपदाएं भी आने लगती है। मानव का पूर्ण और प्राकृतिक जीवन केवल लिप्सा, भोग और कामनाओं के जाल में घिर जाता है। इससे मानवता के समर्थक दुख पाते है। लेकिन इसका एक पक्ष और भी है, कि निजी स्वार्थ से उठकर कुछ लोग मानवता की भलाई में ही अपने जीवन को समर्पित कर देते हैं।
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परहित का अर्थ:- परहित दो शब्दों के योग से बना हैं – पर हित। पर का अर्थ है – अपनों से अतिरिक्त कोई भी दूसरा तथा हित का अर्थ है- भलाई। अतः इस शब्द का अर्थ है – दूसरों की भलाई। दूसरों का अर्थ है – वे लोग, जो हमारे अपने नहीं हैं, जिनसे हमारा कोई स्वार्थ नहीं है। कभी-कभी हम अपने नाते-रिश्ते के लोगों प्रति भी करूणा की भावना रखकर उनका हित करते हैं। लेकिन अपने प्रियजन-परिजन, नाते-रिश्तेदारी का हित करना वास्तव में मनुष्य का नैतिक कर्तव्य होता है। इसे सहायता रूप में जाना जा सकता है। इसका भी महत्व होता है और यह सद् कर्म है, मानवीयता है और मानव का धर्म भी है।