जिंदगी के लिए कविता हिंदी में – A Hindi Poem On Life

Hindi poems for life – जिंदगी एक फूल की तरह होती है जो फूलों कि तरह कभी रुलाती, कभी हंसती,  कभी जिम्मेदारियों का अहसास कराती है। मनुष्य की जिंदगी भगवान का एक खूबसूरत तोहफा है जिसे हर एक मनुष्य अपने हिसाब से जीता है। दोस्तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री हरिवंश राय बच्चन जी एक शानदार लाइफ पोइमस जो एक पथिक की लाइफ के ऊपर लिखी गई है। 


Best Hindi Poem For Life By  हरिवंश राय बच्चन 

मे जग जीवन का भार लिए फिरता हूं,


फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं,

कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर,

में सांसो के दो तार लिए फिरता हूं।

में स्नेह सुरा का पान किया करता हूं,

में कभी न जग का ध्यान किया कार्य करता हूं,

जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,

में अपने मन का गान किया करता हूं।

में निज उर के उदगार लिए फिरता हूं,

में निज उर के उपहार लिए फिरता हूं,

है यह अपुर्णं संसार न मुझको भाता,

में स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूं।

में जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूं,

सुख दुख दोनों में मग्न रहा करता हूं,

जग भव सागर तरने को नाव बनाए,

में भव मोजो पर मस्त बहा करता हूं।

में यौवन का उन्माद लिए फिरता हूं,

उन्मादो में अवसाद लिए फिरता हूं,

जो मुझको बाहर हंसा, रुलाती भीतर,

में, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूं,

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?

नादान वहीं है, हाय, जहां है दाना,

फिर मुढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?

में सीख रहा हूं, सीखा ज्ञान भुलाना,

में और, और जग और, कहा का नाता,

में बना बना कितने जग रोज मिटाता,

जग जिस प्रथ्वी पर जोड़ा करता वेभव

में प्रति पग से उस प्रथ्वी को ठुकराता !

में निज रोदन में राग लिए फिरता हूं,

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं,

हो जिस पर भूपो के प्रसाद निछावर,

में वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूं,

में रोया इसको तुम कहते हो गाना

में फुट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,

क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,

में दुनिया का हूं, एक नया दीवाना,

में दीवानों का वेश लिए फिरता हूं,

में मादकता निःशेश लिए फिरता हूं,

जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,

में मस्ती का संदेश लिए फिरता हूं !

हो जाय न पथ में रात कही

मंजिल भी तो है दूर नहीं,

यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी जल्दी चलता है !

दिन जल्दी जल्दी ढलता है !

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीडो से झांक रहे होंगे,

यह ध्यान परो में चिड़िया के भरता कितनी चंचलता है !

दिन जल्दी जलदी ढलता है।

मुझसे मिलने की कौन विकल ?

में होऊ किसके हित चंचल ?

यह प्रशन शिथिल करता पद को, भरता उर में विहलता है ।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ।

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