दर्शको आज हम आपके लिए विज्ञान वरदान या अभिशाप के ऊपर हिंदी में निबंध लेकर आये है। इस निबंध की रुपरेखा निम्न प्रकार से प्रदर्शित है – निबंध के कर्मानुसार बिंदु
- प्रस्तावना
- विज्ञान की प्रगति
- विज्ञान का वरदान
- विज्ञान का अभिशाप
- उपसंहार
प्रस्तावना –
सेवक बनकर वरदायी जो, स्वामी बनकर है अभिशाप !
नर का ही उपयोग ज्ञान को, पुण्य बनाता है या फिर पाप !!
एक ही वस्तु एक पक्ष से देखने पर वरदान प्रतीत होती है और वही दूसरे पक्ष से देखने पर अभिशाप प्रतीत होती है। औषधि के रूप में जो विष जीवन-रक्षक है, वही विष के रूप में प्राणघातक है। एक ही लोहे से बधिक तलवार और शल्य चिकित्सक की छुरी बनती है किन्तु इसमें लोहे या विष को दोषी नहीं बताया जा सकता। ज्ञान का उपयोग ही उसके परिणाम को निश्चित करता है। विज्ञान भी विशिष्ठ और क्रमबद्ध ज्ञान ही है। हम चाहे तो इसे सत्य, शिव और सुन्दर की अर्चना बना दे और चाहे तो उसे महाविनाश, अमंगल और कुरूपता का उपकरण बना दे।
विज्ञान की प्रगति – यो तो सर्ष्टि के आदि से मानव ज्ञान विज्ञान में परवर्त है किन्तु बीसवीं और उनीसवीं सदियां तो विज्ञान की चरमोन्नति के काल है। जीवन पर विज्ञान के अनन्त उपकार है। ऐसा कोनसा क्षेत्र है जिसे विज्ञान ने अपने उपकारों से कृतज्ञ न बनाया हो ? ऐसा कोनसा अभागा देश है जो यंत्रो के घर्घर नाद से न गूंज रहा हो ? सुई से लेकर अंतरिक्ष यान तक में विज्ञान की महिमा का गान-गुणगान हो रहा है।
विज्ञान का वरदान – आज विज्ञान मानव-जीवन के लिए हर मनोकामना की पूर्ति करने वाला कल्पवृक्ष बना हुआ है। विज्ञान ने मानव को प्रकृति पर निर्भरता से मुक्त करके उसे अकल्पनीय सुख-सुविधाएं और सुरक्षा उपलब्ध कराई है। विज्ञान के वरदान का स्वरूप निम्न प्रकार से देखा जा सकता है –
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1. कृषि क्षेत्र – रासायनिक खादों, उन्नत बीजो, कृषि यंत्रो, बांधो, नहरों और कृत्रिम वर्षा की सौगात देकर विज्ञान मानव के कृषि भंडार भर रहा है। वही नाना प्रकार की ग्रह-निर्माण सामग्री और शिल्पनीयज्ञान से विज्ञान मानव विलास-भवनों का निर्माण कर रहा है। वही मानवतन को मनमोहक कृत्रिम और परम्परागत वस्त्रो से अलंकृत कर रहा है।
2. चिकित्सा क्षेत्र – क्षय, कैंसर, कुष्ठ तथा एड्स जैसे घृणित रोगो पर विजय पाने में यह संघर्षरत है। जीन से लेकर क्लोन बनाने तक की मंजिल तय करके वह जीवन के रहस्य को ढूंढ रहा है। प्लास्टिक सर्जरी से कुरूपो को सुरूपता दे रहा है। मस्तिष्क, ह्रदय और गुर्दो की पुनः स्थापना कर रहा है। अमरता की मंजिल को प्रशस्त कर रहा है।
3. विध्युत एवं परिवहन क्षेत्र में – भीमकाय यंत्रो को उसी की विद्युत क्षमता शक्ति घुमा रही है। वही जल, थल, नभ में वाहन दौड़ लगा रहे है। वही अंतरिक्ष और ब्रह्माण्ड के कुंवारे पथो को नाप रहा है।
4. संचार का क्षेत्र – रेडियो, मोबाइल फ़ोन, टेलीविजन और इंटरनेट जैसे उपकरणों से उसने सारे विश्व को सिकोड़कर छोटा कर डाला है। रेडियो-दूरबीनो से यह बर्ह्माण्ड की छान-बीन कर रहा है, वसुंधरा के गर्भ में झांककर सागर के अतल ताल को माप रहा है।
5. मनोरंजन तथा व्यवसाय के क्षेत्र में – मनोरंजन के अनेक साधनो के साथ व्यापार के क्षेत्र में भी उसने ई-मेल और ई-बैंकिंग जैसे साधन उपलब्ध कराये है।
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विज्ञान अभिशाप के रूप में – विज्ञान के उपरोक्त वरदानो के पीछे उसके कई अभिशाप भी छिपे हुए है। विज्ञान द्वारा निर्मित अस्त्र-शस्त्रो ने ही बस्तियों को श्मशान बना दिया। हिरोशिमा और नागासाकी जैसे नगरों को विश्व के मानचित्र से मिटाने का श्रेय भी विज्ञान को ही जाता है। विज्ञान ने मनुष्य को घोर भौतिकवादी बनाकर उसके श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को पददलित कराया है। विज्ञान की कृपा से ही आज का यह जगमगाता प्रगतिशील विश्व बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है।
उपसंहार –
सावधान मनुष्य यदि विज्ञान है तलवार
तो इसे फेंक तजकर मोह स्मृति पार।
हो चूका है सिद्ध है तू शिशु अभी नादान
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।
वस्तुत विज्ञान न वरदान है न अभिशाप। मनुष्य की उपयोग बुद्धि ही उसके स्वरूप की निर्णायक है। अतः मनुष्य जाति का कल्याण इसी में है कि वह विज्ञान को अपना स्वामी न बनाकर उसे सेवक की भूमिका तक ही सिमित रखे।
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